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अपनी बात - &2358 - Bog

अपनी बातaf &2358
Bag om अपनी बात

अपनी बात.. सबसे पहले करूँ याद मेरे ह्रदय में,सँजोये मेरे माता पिताजी के,आशीर्वाद को जिनके कारण में आज इस दुनिया में हूँ,वे नहीं अभी मेरे साथ पर उनका आशीर्वाद जीवनपर्यंत मेरे साथ रहा,उनकी याद उनकी स्मृति को सादर प्रणाम।। आदमी जो भोगता है, वही उसका अनुभव,वेदना,ज्ञान, बरबस उसकी कविता में झलकता है,प्रभावित करता है, मेरे मन में जो,कविता है,वो मेरा भोगा हुआ यथार्थ है। अपने आसपास घटित हो रही एक आम हिंदुस्तानी की रोजमर्रा की,ज़िन्दगी पर उसका अवलोकन,जो कविता,के रूप में प्रकट हुआ। में अब क्या कहूँ,कहा बहुत कुछ,अब,समझ ही,लेना, लहज़े में कुछ कमी हो,तो,मेरे चेहरे ही,को पढ़ लेना, कभी होती है,किसी,शख्स को दर्द की,इंतिहा इतनी, उसे,बयां किसे, करे,कैसे करे,अक्सर,सूझता ही नहीँ, जयेश वर्मा

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  • Sprog:
  • Hindi
  • ISBN:
  • 9789354386312
  • Indbinding:
  • Paperback
  • Sideantal:
  • 80
  • Udgivet:
  • 6. april 2021
  • Størrelse:
  • 127x5x203 mm.
  • Vægt:
  • 95 g.
  • BLACK NOVEMBER
Leveringstid: 8-11 hverdage
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Beskrivelse af अपनी बात

अपनी बात.. सबसे पहले करूँ याद मेरे ह्रदय में,सँजोये मेरे माता पिताजी के,आशीर्वाद को जिनके कारण में आज इस दुनिया में हूँ,वे नहीं अभी मेरे साथ पर उनका आशीर्वाद जीवनपर्यंत मेरे साथ रहा,उनकी याद उनकी स्मृति को सादर प्रणाम।। आदमी जो भोगता है, वही उसका अनुभव,वेदना,ज्ञान, बरबस उसकी कविता में झलकता है,प्रभावित करता है, मेरे मन में जो,कविता है,वो मेरा भोगा हुआ यथार्थ है। अपने आसपास घटित हो रही एक आम हिंदुस्तानी की रोजमर्रा की,ज़िन्दगी पर उसका अवलोकन,जो कविता,के रूप में प्रकट हुआ। में अब क्या कहूँ,कहा बहुत कुछ,अब,समझ ही,लेना, लहज़े में कुछ कमी हो,तो,मेरे चेहरे ही,को पढ़ लेना, कभी होती है,किसी,शख्स को दर्द की,इंतिहा इतनी, उसे,बयां किसे, करे,कैसे करे,अक्सर,सूझता ही नहीँ, जयेश वर्मा

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