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बोरसी - Pratima Singh - Bog

Bag om बोरसी

About the Book: - कितने ही दृश्य परदे के पीछे रह जाते हैं! कितने किरदार कथानक में अपनी जगह नहीं बना पाते! सच है, तस्वीरें सब कुछ नहीं दिखातीं। कहानियां सब कुछ नहीं सुनातीं। इन दोनों में, बीच में जो रह जाता है, जो छूट जाता है, यह किताब उन कतरनों को समेट कर आगे बढ़ती है। इसकी कविताएं हमारे अंदर और बाहर बीत रहे को बड़ी बारीकी से उकेरती हैं। इनको पढ़ते हुए आप अपने गांव, घर या शहर को स्पष्ट रूप देख सकते हैं और चलते-चलते ख़ुद को भी महसूस कर सकते हैं। इसके टू लाइनर भी गहरे तक छूते हैं, जैसे- "नहीं मालूम उसे समन्दर ठगेगा या आसमान, वह बच्ची अपने घरौंदे की दीवार हमेशा नीले रंग से रंगती है। लेखिका की यह पहली किताब ज़रूर है लेकिन लगातार घट रहे वक़्त के तमाम पहलुओं को उन्होंने बड़ी सुघड़ता से बुना है। अब यह पाठक के ऊपर है कि कौन सी बात उसके मन के आकार में फ़िट होती हैं, कौन सी मिसफ़िट लेकिन यह ज़रूर है कि महसूसियत के इस बहाव में पाठक का पूरा-पूरा भीगना तय है। जहां छिछला समझ के पांव रखेंगे, अगले ही क्षण डूबने की पूरी संभावना है।

Vis mere
  • Sprog:
  • Hindi
  • ISBN:
  • 9788196096571
  • Indbinding:
  • Paperback
  • Sideantal:
  • 178
  • Udgivet:
  • 27. februar 2023
  • Størrelse:
  • 133x10x203 mm.
  • Vægt:
  • 209 g.
  • BLACK NOVEMBER
Leveringstid: 2-3 uger
Forventet levering: 9. december 2024

Beskrivelse af बोरसी

About the Book: - कितने ही दृश्य परदे के पीछे रह जाते हैं! कितने किरदार कथानक में अपनी जगह नहीं बना पाते! सच है, तस्वीरें सब कुछ नहीं दिखातीं। कहानियां सब कुछ नहीं सुनातीं। इन दोनों में, बीच में जो रह जाता है, जो छूट जाता है, यह किताब उन कतरनों को समेट कर आगे बढ़ती है। इसकी कविताएं हमारे अंदर और बाहर बीत रहे को बड़ी बारीकी से उकेरती हैं। इनको पढ़ते हुए आप अपने गांव, घर या शहर को स्पष्ट रूप देख सकते हैं और चलते-चलते ख़ुद को भी महसूस कर सकते हैं। इसके टू लाइनर भी गहरे तक छूते हैं, जैसे- "नहीं मालूम उसे समन्दर ठगेगा या आसमान, वह बच्ची अपने घरौंदे की दीवार हमेशा नीले रंग से रंगती है। लेखिका की यह पहली किताब ज़रूर है लेकिन लगातार घट रहे वक़्त के तमाम पहलुओं को उन्होंने बड़ी सुघड़ता से बुना है। अब यह पाठक के ऊपर है कि कौन सी बात उसके मन के आकार में फ़िट होती हैं, कौन सी मिसफ़िट लेकिन यह ज़रूर है कि महसूसियत के इस बहाव में पाठक का पूरा-पूरा भीगना तय है। जहां छिछला समझ के पांव रखेंगे, अगले ही क्षण डूबने की पूरी संभावना है।

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