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Balgandharva : Adhunik Marathi Rangmanch Ke Ek Mithak Ki Talash - Abhiram Bhadkamkar - Bog

Bag om Balgandharva : Adhunik Marathi Rangmanch Ke Ek Mithak Ki Talash

बालगंधर्व-मराठी संगीत-रंगमंच के देदीप्यमान नक्षत्र ! अपने सम्पूर्ण अस्तित्व में सिर्फ और सिर्फ कलाकार । भूमिकाओं को ओढ़कर नहीं, अपनी आत्मा की गहराइयों से उगाकर जीने वाले अभिनेता, पुरुष होते हुए जिनकी स्त्री-भूमिकाएँ महाराष्ट्र में महिलाओं के लिए सौन्दर्य-चेतना की प्रेरक बनी, मंच पर जिनकी वेशभूषा को देखकर स्त्रीयों ने अपना पहनावा, अपना साज़-श्रृंगार दुरुस्त किया और युवकों में अपनी पुरुष-देह को स्त्री-रूप में देखने का फैशन ही चल पडा । ऐसे बालगंधर्व जो सिर्फ कलाकार नहीं, अपने चाहने वालों के लिए देवता थे, जिन्हें साठ वर्ष की आयु में भी लोगों ने उतने ही प्रेम से, उतनी ही श्रद्धा से देखा जितने चाव से युवावस्था में देखा-सुना । यह उपन्यास उन्ही नारायण श्रीपाद राजहंस की जीवन-कया है जिन्हें बहुत छोटी अवस्था में गाते सुनकर लोकमान्य तिलक ने बालगंधर्व की उपाधि से विभूषित किया और बाद में जो इसी नाम जाने जाते रहे । उपन्यास में लेखक ने उनके जीवन के तमाम उपलब्ध तथ्यों को उनके कला तथा निजी जीवन के विवरणों के साथ संगुम्फित किया है; गहरे आत्मीय भाव के साथ उन्होंने भारतीय शास्त्रीय रंगमंच के उस व्यक्तित्व के अरन्तरिक और बाह्य जीवन को उस दौर के सामाजिक और राजनीतिक परिपेक्ष्य के साथ इस तरह चित्रित किया है कि बालगंधर्व अपने सम्पूर्ण व्यक्तित्व में हमें अपने सामने खड़े दिखने लगते हैं । उनके जीवन के स्वर्णकाल क्रो देख हम चकित होते हैं और बाद में जब उनका जीवन नियति की विडम्बनाओँ की लहरों पर बहने लगता है, हम अवसाद से भर उठते हैं । उपन्यास में हम पारम्परिक रंगमंच के एक ऐसे युग से भी साक्षात्कार करते हैं, जो आज हमें अकल्पनीय लगता है ।

Vis mere
  • Sprog:
  • Hindi
  • ISBN:
  • 9789388183086
  • Indbinding:
  • Hardback
  • Sideantal:
  • 392
  • Udgivet:
  • 1. September 2018
  • 2-3 uger.
  • 9. Oktober 2024

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Beskrivelse af Balgandharva : Adhunik Marathi Rangmanch Ke Ek Mithak Ki Talash

बालगंधर्व-मराठी संगीत-रंगमंच के देदीप्यमान नक्षत्र ! अपने सम्पूर्ण अस्तित्व में सिर्फ और सिर्फ कलाकार । भूमिकाओं को ओढ़कर नहीं, अपनी आत्मा की गहराइयों से उगाकर जीने वाले अभिनेता, पुरुष होते हुए जिनकी स्त्री-भूमिकाएँ महाराष्ट्र में महिलाओं के लिए सौन्दर्य-चेतना की प्रेरक बनी, मंच पर जिनकी वेशभूषा को देखकर स्त्रीयों ने अपना पहनावा, अपना साज़-श्रृंगार दुरुस्त किया और युवकों में अपनी पुरुष-देह को स्त्री-रूप में देखने का फैशन ही चल पडा । ऐसे बालगंधर्व जो सिर्फ कलाकार नहीं, अपने चाहने वालों के लिए देवता थे, जिन्हें साठ वर्ष की आयु में भी लोगों ने उतने ही प्रेम से, उतनी ही श्रद्धा से देखा जितने चाव से युवावस्था में देखा-सुना । यह उपन्यास उन्ही नारायण श्रीपाद राजहंस की जीवन-कया है जिन्हें बहुत छोटी अवस्था में गाते सुनकर लोकमान्य तिलक ने बालगंधर्व की उपाधि से विभूषित किया और बाद में जो इसी नाम जाने जाते रहे । उपन्यास में लेखक ने उनके जीवन के तमाम उपलब्ध तथ्यों को उनके कला तथा निजी जीवन के विवरणों के साथ संगुम्फित किया है; गहरे आत्मीय भाव के साथ उन्होंने भारतीय शास्त्रीय रंगमंच के उस व्यक्तित्व के अरन्तरिक और बाह्य जीवन को उस दौर के सामाजिक और राजनीतिक परिपेक्ष्य के साथ इस तरह चित्रित किया है कि बालगंधर्व अपने सम्पूर्ण व्यक्तित्व में हमें अपने सामने खड़े दिखने लगते हैं । उनके जीवन के स्वर्णकाल क्रो देख हम चकित होते हैं और बाद में जब उनका जीवन नियति की विडम्बनाओँ की लहरों पर बहने लगता है, हम अवसाद से भर उठते हैं । उपन्यास में हम पारम्परिक रंगमंच के एक ऐसे युग से भी साक्षात्कार करते हैं, जो आज हमें अकल्पनीय लगता है ।

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