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Chirag-E-Dair - Mirza Ghalib - Bog

Bag om Chirag-E-Dair

मिर्ज़ा ग़ालिब की बनारस-यात्रा मशहूर है। उन्होंने फारसी में, जो उनकी प्रिय काव्यभाषा थी, एक मसनवी 'चिराग-ए-दैर' नाम से लिखी थी। यों तो बनारस सदियों से एक पुण्य-नगरी है और उसकी स्तुति में बहुत कुछ इस दौरान लिखा गया है। गालिब की मसनवी उस परम्परा में होते हुए भी अनोखी है जो एक महान कवि की एक महान तीर्थ की यात्रा को सच्चे और सशक्त काव्य में रूपायित करती है। एक ऐसे समय में जब हिन्दू और इस्लाम धर्मों के बीच दूरी बढ़ाने की अनेक प्रबल और निर्लज्ज दुचेष्टाएँ हो रही हैं इस मसनवी का हिन्दी अनुवाद एक तरह की याददहानी का काम करता है कि यह दूरी कितनी बहुत पहले पट चुकी थी। -अशोक वाजपेयी

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  • Sprog:
  • Hindi
  • ISBN:
  • 9788126730902
  • Indbinding:
  • Hardback
  • Sideantal:
  • 126
  • Udgivet:
  • 1. Januar 2018
  • Størrelse:
  • 140x11x216 mm.
  • Vægt:
  • 308 g.
  • 2-3 uger.
  • 10. September 2024
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Beskrivelse af Chirag-E-Dair

मिर्ज़ा ग़ालिब की बनारस-यात्रा मशहूर है। उन्होंने फारसी में, जो उनकी प्रिय काव्यभाषा थी, एक मसनवी 'चिराग-ए-दैर' नाम से लिखी थी। यों तो बनारस सदियों से एक पुण्य-नगरी है और उसकी स्तुति में बहुत कुछ इस दौरान लिखा गया है। गालिब की मसनवी उस परम्परा में होते हुए भी अनोखी है जो एक महान कवि की एक महान तीर्थ की यात्रा को सच्चे और सशक्त काव्य में रूपायित करती है। एक ऐसे समय में जब हिन्दू और इस्लाम धर्मों के बीच दूरी बढ़ाने की अनेक प्रबल और निर्लज्ज दुचेष्टाएँ हो रही हैं इस मसनवी का हिन्दी अनुवाद एक तरह की याददहानी का काम करता है कि यह दूरी कितनी बहुत पहले पट चुकी थी। -अशोक वाजपेयी

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